यूसीसी नोटिफिकेशन के 30 दिनों के भीतर लिव-इन का रजिस्ट्रेशन जरूरी, जानिए लीजिए पूरा खाका

देहरादून: समान नागरिक संहिता के नियमों की अधिसूचना के 30 दिनों के भीतर उत्तराखंड में सभी लिव-इन रिलेशनशिप का सरकार के साथ पंजीकरण अनिवार्य हो जाएगा, यह प्रस्ताव किया गया है। नियमों पर नौ सदस्यीय यूसीसी पैनल ने शुक्रवार को राज्य सरकार को अपनी रिप

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देहरादून: समान नागरिक संहिता के नियमों की अधिसूचना के 30 दिनों के भीतर उत्तराखंड में सभी लिव-इन रिलेशनशिप का सरकार के साथ पंजीकरण अनिवार्य हो जाएगा, यह प्रस्ताव किया गया है। नियमों पर नौ सदस्यीय यूसीसी पैनल ने शुक्रवार को राज्य सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी है। पैनल ने प्रस्ताव दिया है कि नियमों की अधिसूचना के एक महीने के भीतर सभी लिव-इन रिलेशनशिप को पंजीकृत किया जाना चाहिए। ऐसा न करने पर कार्रवाई की जाएगी।
लिव-इन का पंजीकरण ऑनलाइन संभव होगा। लिव-इन के लिए यूसीसी प्रावधानों के तहत जोड़ों को पंजीकरण कराने और सरकार की जांच का मुद्दा इस साल लोकसभा चुनावों से पहले युवाओं के बीच एक महत्वपूर्ण चर्चा का विषय था। पूर्व मुख्य सचिव शत्रुघ्न सिंह के नेतृत्व में नौ सदस्यीय पैनल ने इसको तैयार किया है।

30 दिनों में पूरा होगा जांच का प्रोसेस
लिव इन में रहने वालों में से यदि किसी एक की उम्र 21 वर्ष से कम होने पर इसकी सूचना उसके माता-पिता एवं अभिभावकों को निबंधक द्वारा दी जाएगी।यूनिफॉर्म सिविल कोड में प्रावधान है कि लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले पार्टनर को अपने इलाके के रजिस्ट्रार के सामने धारा-381(1) के तहत बयान दर्ज कराना होगा। रजिस्ट्रार ऐसे कपल का वेरिफिकेशन के लिए आदेश पारित कर सकता है। वह 30 दिनों में पार्टनर के बारे में जांच प्रक्रिया पूरी करेंगे। इसके लिए वह आवेदक या अन्य को समन जारी कर बुला सकते हैं।

लिव-इन रिलेशनशिप को 'खत्‍म' करना भी आसान नहीं होगा
रजिस्‍टर्ड लिव-इन रिलेशनशिप को 'खत्‍म' करना भी आसान नहीं होगा। इसके लिए 'निर्धारित प्रारूप' में एक लिखित बयान दाखिल करना होगा। यदि रजिस्ट्रार को लगता है कि संबंध समाप्त करने के कारण "गलत" या "संदिग्ध" हैं, तो इसकी पुलिस जांच भी हो सकती है। 21 वर्ष से कम आयु वालों के माता-पिता या अभिभावकों को भी इसके बारे में सूचित किया जाएगा।

6 महीने की जेल और 25 हजार रुपये जुर्माना
लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के लिए दी गई गलत जानकारी कपल को मुसीबत में भी डाल सकती है। गलत जानकारी प्रदान करने पर व्यक्ति को तीन महीने की जेल, 25,000 रुपये का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। लिव-इन रिलेशनशिप को पंजीकृत नहीं कराने पर अधिकतम छह महीने की जेल, ₹ 25,000 का जुर्माना या दोनों का सामना करना पड़ेगा। यहां तक कि पंजीकरण में एक महीने से भी कम की देरी पर तीन महीने तक की जेल, ₹ 10,000 का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।

भरण पोषण का दावा कर सकती है महिला
अगर किसी महिला को उसका लिव-इन पार्टनर छोड़ देता है तो वो मेंटेनेंस का दावा कर सकती है। पीड़ित महिला उस इलाके के कोर्ट में दावा कर सकती है, जहां लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले आखिरी बार साथ रहे थे। लिव-इन रिलेशनशिप के दौरान पैदा हुए बच्चे वैध संतान माने जाएंगे। लिव-इन संबंधों में पैदा हुए बच्चों को वे सारे अधिकार मिलेंगे, जो शादी के बाद पैदा हुए बच्चों को मिलते हैं। किसी भी बच्चे को नाजायज नहीं माना जा सकेगा। बच्चों को माता-पिता की विरासत में समान अधिकार होगा।

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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